बिहार में नई सरकार के गठन के बाद 20 नवंबर को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शपथ ली और उनके साथ नवगठित मंत्रिमंडल के कई सदस्यों ने भी जिम्मेदारी संभाली। इसी क्रम में संजय कुमार ने गन्ना उद्योग मंत्री के रूप में शपथ ली है। पदभार ग्रहण करते ही उन्होंने विभाग की सबसे बड़ी समस्या, बंद चीनी मिलों (Sugar Factories Bihar) को चालू करने और किसानों को समय पर भुगतान सुनिश्चित करने, पर जोर दिया।
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बिहार की चीनी मिलों (Sugar Factories Bihar) का क्या है हाल?
एक समय था जब बिहार को “चीनी का हब” कहा जाता था। राज्य में कुल 33 चीनी मिलें सक्रिय थीं, जो बड़े पैमाने पर रोजगार भी देती थीं। लेकिन समय के साथ प्रबंधन की कमजोरी, मशीनों की खराब हालत और नीतिगत चुनौतियों की वजह से अधिकांश मिलें बंद होती गईं। आज बिहार में केवल 9 चीनी मिलें ही संचालित हो रही हैं, जबकि बाकी वर्षों से बंद पड़ी हैं। इन मिलों के बंद होने से किसानों, मजदूरों और संबंधित उद्योगों को भारी नुकसान झेलना पड़ा है।
नए गन्ना उद्योग मंत्री की पहली बड़ी घोषणा
संजय कुमार ने विभाग का कार्यभार संभालने के बाद अधिकारियों के साथ बैठक की और गन्ना किसानों तथा चीनी मिलों से जुड़े मुद्दों की समीक्षा की। उन्होंने स्पष्ट निर्देश दिया कि, बंद चीनी मिलों को फिर से चालू करने की दिशा में तत्काल योजना तैयार की जाए, गन्ना किसानों को भुगतान समय पर मिले, विभागीय कामकाज में पारदर्शिता लायी जाए, और योजनाओं की मॉनिटरिंग तेज की जाए, इसके साथ ही लंबित फाइलों और पुराने प्रोजेक्ट्स की तेजी से समीक्षा की जाए।
मंत्री संजय कुमार ने कहा कि बिहार के लाखों गन्ना किसान सिर्फ चीनी मिलों (Sugar Factories Bihar) के भरोसे चलते हैं, इसलिए मिलों का संचालन राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए बेहद जरूरी है।
केंद्र सरकार भी कर रही है समर्थन
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पटना में 800 करोड़ रुपए की कई परियोजनाओं का उद्घाटन किया था, जिनमें कृषि और गन्ना उद्योग से जुड़ी योजनाएं भी शामिल थीं। इससे संकेत मिला था कि बिहार में गन्ना आधारित उद्योगों के लिए केंद्र से भी मजबूत सहयोग मिलने वाला है।
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बंद मिलों के कारण किसानों को या तो दूर-दराज के जिलों में गन्ना भेजना पड़ता है या फिर फसल को कम दाम पर बेचना पड़ता है। इससे उनकी आय प्रभावित होती है। यदि सरकार की योजना के अनुसार बंद मिलें फिर से चालू होती हैं, तो गन्ना किसानों को स्थानीय स्तर पर ही खरीद केंद्र मिलेंगे, ट्रांसपोर्ट का खर्च कम होगा, रोजगार के नए अवसर बनेंगे, ग्रामीण इलाकों में अर्थव्यवस्था मजबूत होगी।

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