इलेक्टोरल बॉन्ड क्या है, सुप्रीम कोर्ट ने क्यों लगाया इस पर पर रोक

इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bond) एक वित्तीय साधन है जिसकी घोषणा 2017 में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने बजट…

SBI Electoral Bond Case

इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bond) एक वित्तीय साधन है जिसकी घोषणा 2017 में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने बजट भाषण में की थी। यह मनी बिल के रूप में 29 जनवरी 2018 को लागू हुआ था। यह बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

इलेक्टोरल बॉन्ड भारतीय स्टेट बैंक (State Bank of India) द्वारा जारी किया जाता है और बॉन्ड को नकद में खरीदा जाता है। जिसमे बॉन्ड खरीदने वाले व्यक्ति या संगठन का नाम गुप्त रखा जाता है।

इसे उदाहरण के तौर पर समझिए :

मान लीजिए कि एक बड़ी कंपनी (XXX COMPANY), भारतीय जनता पार्टी (BJP) को चंदा देना चाहती है। कंपनी 100 करोड़ रुपये का इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदती है। यह बॉन्ड किसी भी भारतीय स्टेट बैंक की शाखा से खरीदा जा सकता है।

बॉन्ड खरीदने के बाद, कंपनी इसे भाजपा को दान के रूप में देती है। भाजपा इस बॉन्ड को किसी भी बैंक में भुना (Redeem) सकती है जिससे भाजपा को 100 करोड़ रुपये मिल जाएंगे। इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले का नाम गुप्त रखा जाता है। इसका मतलब यह है कि कोई भी यह नहीं जान सकता कि भाजपा को 100 करोड़ रुपये का चंदा किसने दिया है ।

कौन कौन राजनीतिक दल इलेक्टोरल बॉन्ड प्राप्त कर सकते हैं

वैसे राजनीतिक दल जो चुनाव आयोग (Election Commission of India) के साथ पंजीकृत हैं, वे इलेक्टोरल बॉन्ड प्राप्त कर सकते हैं,
साथ ही इसके कुछ मानदंड भी है.

  • वैसे राजनीतिक दल जो पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनावों में कम से कम 1% वोट हासिल किए हैं, वे इलेक्टोरल बॉन्ड प्राप्त कर सकते हैं।
  • साथ ही, जिन राजनीतिक दलों ने पिछले वित्तीय वर्ष में आयकर रिटर्न दाखिल किया है, वैसे पार्टी इलेक्टोरल बॉन्ड प्राप्त कर सकती हैं।

आखिर क्यों लाई गई थी यह इलेक्टोरल बॉन्ड :

इलेक्टोरल बॉन्ड से पहले, राजनीतिक दलों को नकद और चेक के रूप में चंदा मिलता था, जिससे कई भ्रष्टाचार के किस्से आए दिन आते थे. इलेक्टोरल बॉन्ड से चंदा लेने-देन की प्रक्रिया अधिक पारदर्शी हो सकती थी। हालांकि, इलेक्टोरल बॉन्ड से राजनीतिक दलों को चंदा देने वाले लोगों का नाम गुप्त रखा जाता है. लेकिन राजनीतिक दलों को चुनाव आयोग को इलेक्टोरल बॉन्ड से प्राप्त चंदे के बारे में जानकारी देनी होती है।

इलेक्टोरल बॉन्ड के कारण राजनीतिक दलों को नकद चंदा 2000 से अधिक नहीं दे सकते है। नगद चंदा का कोई जवाब देही नहीं रहता था जिस वजह से राजनितिक दल इन नकद चंदे का इस्तेमाल अक्सर राजनीतिक भ्रष्टाचार के लिए करते थे।

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सुप्रीम कोर्ट ने क्यों लगाया इस पर पर रोक

इलेक्टोरल बॉन्ड सूचना के अधिकार (RTI) (Article 19) का उल्लंघन करती है क्योंकि यह दानदाताओं की पहचान को गुप्त रखती है। इसलिए 15 फरवरी 2024 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द कर दिया है।

यह बॉन्ड पारदर्शिता में कमी पैदा करती है साथ ही राजनीतिक पार्टियों द्वारा किये जाने वाले भ्रष्टाचार का खतरा को भी बढ़ाती है।

उदाहरण के तौर पर समझिए, एक कम्पनी जिनपर ED द्वारा छापा पड़े वो इलेक्टोरल बॉन्ड के मदद से राजनितिक दल को फंड दे कर अपना पीछा छुड़ा सकती है। साथ ही, इलेक्टोरल बॉन्ड से छोटे राजनीतिक दलों को फायदा ना पहुंचने से चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से नहीं हों रही हैं।

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